बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

अभिव्‍यक्ति की आजा़दी के नाम पर क्‍या कुछ भी किया जा सकता है

गूगल सर्च से मिली तस्‍वीर। 
असहिष्‍णुता और अभिव्‍यक्ति दो ऐसे शब्‍द हैं, जिन्‍होंने पिछले दो वर्षों में हमारे देश में काफी ख्‍याति पाई है। ऐसी ख्‍याति जो पूरी दुनिया में चर्चित हुई। कभी धर्म के नाम पर तो कभी बोलने के नाम पर असहिष्‍णुता और अभिव्‍यक्ति की बात की गई। यह तो सच है कि हमारे संविधान ने बोलने की स्‍वतंत्रता दी है, लेकिन इसकी आड़ में आप किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाएं, या मान‍हानि करें तो क्‍या इसे सही कहा जाएगा। अभिव्‍यक्ति की आजादी के नाम पर आप पाकिस्‍तान जिंदाबाद कहें तो क्‍या यह सही है। अफज़ल गुरु एक ऐसा शख्‍स था, जिसने देश की संसद पर हमले की साजिश में आतंकियों की मदद की। उसे देश की सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी।
तो, जो लोग उसकी मौत पर ग़म मना रहे हैं या फिर इसे अन्‍याय कह रहे हैं, उन्‍हें क्‍या माना जाए। यहां पर मैं धर्म या जाजि की बात नहीं कर रहा हूं। मैं एक घटना की बात कर रहा हूं।
मेरा एक सवाल है सहिष्‍णुता और अभिव्‍यक्ति के झंडाबरदारों से, कि क्‍या वो लोग कभी पाकिस्‍तान जाकर सरबजीत की मौत के लिए पाकिस्‍तानी सरकार का विरोध करेंगे। क्‍या उस क्रिकेट प्रेमी के समर्थन में रैलियां निकालेंगे, जिसे केवल इसलिए पाकिस्‍तान ने जेल में डाल दिया क्‍योंकि वो विराट कोहली का फैन है और उसने अपने घर की छत पर तिरंगा फहरा दिया था।
क्‍या अमेरिका में जाकर ओसामा बिन लादेन की हत्‍या के लिए अमेरिकी सरकार और फौज के खिलाफ रैलियां, आंदोलन और भाषणबाजी करेंगे। अगर वो ऐसा भी करते हैं तो निश्चित तौर पर हर भारतवासी दिल से उनका समर्थन करेगा।
लेकिन इस प्रकार की घटनाएं एक ऐसे देश में हो रही हैं, जहां अभिव्‍यक्ति के नाम पर ऐसा करने की पाबंदियां कम हैं। क्‍योंकि जैसे ही उन पर कार्रवाई होगी, तो कई राजनीतिक दल उनका समर्थन करते हुए अपनी रोटियां सेकने के लिए पहुंच जाएंगे।
यह बेहद अफसोसजनक है कि हमारे देश के विश्‍वविद्यालय और कॉलेज पढ़ाई से ज्‍यादा नेतागिरी और राजनीति में सक्रिय हो रहे हैं। इस स्थिति में तो भारत में कभी भी ऑक्‍सफोर्ड या एमआईटी जैसे संस्‍थान खड़े नहीं हो पाएंगे, क्‍योंकि वहां तो लोग पढ़ने जाते हैं और हमारे यहां नेता बनने के लिए। देश में कई ऐसे विश्‍वविद्यालय हैं, जो पूरे साल किसी न किसी मामले पर सुर्खियों में बने रहे हैं। कभी राजनीतिक नियुक्तियों की वजह से तो कभी बयानबाजी या फिर छात्रसंघ के नाम पर।
लगता है कि मानो अभी तक यह तय नहीं हो सका है कि भारतीय शिक्षण संस्‍थान किसलिए बनाए गए हैं। ज्ञानार्जन के लिए या फिर राजनीति दलों को नए मुद्दे देने के लिए।
एक और सबसे मजे़दार बात। द वर्ल्‍ड यूनिसवर्सिटी रैंकिंग हर साल दुनिया के सर्वश्रेष्‍ठ 100 शिक्षण संस्‍थानों की एक सूची जारी करती है, जिसमें भारत का एक भी संस्‍थान नहीं है। क्‍या किसी ने कभी इस बात पर ध्‍यान दिया है कि आखिर क्‍या वजह है कि उक्‍त सूची की टॉप 100 में भारतीय संस्‍थान क्‍यों नहीं हैं।
दिल्‍ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय में हुई ताज़ा घटना से यह तो स्‍पष्‍ट है कि भारतीय शिक्षण संस्‍थान पढ़ाई से इतर किन वजहों से दुनिया में चर्चित हो सकते हैं। यह तो हम पर निर्भर है कि हम नेकी में नाम चाहते हैं या फिर बदी में।
देश हमारा है और हमें ही इसके बारे में सोचना होगा। सियासी दल और सियासतदां तो केवल मुद्दे को उछालने का मौका तलाशते हैं, क्‍योंकि उनके अस्तित्‍व के लिए यह जरूरी है, लेकिन हमारे लिए नहीं।

शनिवार, 6 जून 2015

भूजल का सर्वाधिक दोहन करता है हमारा देश

हमारे देश में भूजल स्‍तर गिर रहा है और हम दुनिया के उन देशों की सूची में सबसे ऊपर हैं, जो भूजल का सबसे ज्‍यादा दोहन करते हैं। यह हम नहीं खुद केंद्र सरकार मान चुकी है। पिछले वर्ष संसद में पेश केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट में बताया गया था देश के 56 फीसदी कुओं का भूजल स्‍तर गिरा है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि देश के 6607 मूल्यांकन इकाइयों (ब्लॉक, मंडल, तालुका) में 15 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के 1071 इकाइयों में भूजल का स्तर अत्यधिक दोहन के कारण गिरा है।

भारी किल्‍लत
वहीं तेजी से गिरते भूजल स्तर पर वैज्ञानिकों ने भी कई बार चिंता जताई है। उनका कहना है कि उत्तर भारत में यह स्तर तेजी से गिरता जा रहा है और लाखों लोगों के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे। नेचर पत्रिका में भी शोधकर्ताओं ने लिखा है कि सिंचाई और दूसरे उपयोग के लिए के लिए पानी की खपत सरकारी अनुमान से कहीं ज्‍यादा तेजी से बढ़ी है। इस कारण कृषि उत्पादन ठप हो सकता है और पीने के पानी की भयंकर किल्लत हो सकती है।
जल संसाधन पर एक नजर
हर साल गर्मी का पारा बढ़ने के साथ ही देश के सभी हिस्सों में जलसंकट गहराने लगता है। शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण क्षेत्र, पानी की समस्या दोनों जगह समान रूप से गंभीर होती जा रही है। भारत जैसे विशाल देश में सभी को साफ और शुद्ध पेयजल मुहैया कराना एक बड़ी चुनौती जैसा ही है। भारत दुनिया की लगभग 17 फीसदी आबादी को समेटे हुए है जबकि देश में पानी की उपलब्धता मात्र 4 फीसदी है। यदि हम पूरे विश्व की बात करें तो धरती का 70 प्रतिशत भाग जलमग्न है लेकिन इनमें से पीने लायक पानी की मात्रा महज 3 प्रतिशत है इसमें से भी 2 प्रतिशत पानी महासागरों में ग्लेशियर के रूप में है जिससे मानव जाति के हिस्से में मात्र 1 प्रतिशत पानी ही उपयोग के लिए उपलब्ध है।
पानी पर निर्भरता
पानी पर हमारी निर्भरता बढ़ती जा रही है और इसके स्रोत घटते जा रहे हैं। हमें पेयजल, दैनिक दिनचर्या, कृषि कार्यों और उद्योग धंधों में पानी की आवश्यकता होती है जिनकी पूर्ति के लिए हम उपलब्ध जल संसाधनों के साथ-साथ भूजल का भी जमकर दोहन कर रहे हैं। लगातार हो रहे दोहन से भूजल का स्तर प्रतिवर्ष 1 से 1.5 प्रतिशत की दर से नीचे जा रहा है। परिणामस्वरूप जल स्रोत सूखने लगे हैं और जलसंकट गहराने लगा है।
जल प्रबंधन की कमी
हमारे देश में आज भी जल संरक्षण और जल प्रबंधन की दिशा में ठोस प्रयास नहीं हो रहे हैं। जल संरक्षण के नाम पर केवल नदियों पर बांध बनना समस्या का हल नहीं है बल्कि भूजल स्तर बढ़ाने के प्रयास भी होने चाहिए। भारत में कई राज्यों में भूजल चिंताजनक स्थिति में पहुंच गया है।
ग्लोबल वार्मिंग
ग्लोबल वार्मिंग के चलते जलवायु में निरंतर परिवर्तन हो रहा है। जिसके कारण वर्षा कभी कम तो कभी ज्यादा हो जाती है। ऐसे में वर्षा जल का उचित प्रबंधन करना जरूरी हो गया है। उत्तर भारत की नदियों में पानी ग्लेशियर से आता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिसमें भविष्य में नदियों के सूखने का खतरा उत्पन्न हो गया है। वहीं मध्य भारत में कुछ ही नदियां वर्षभर बहती रही है और ज्यादातर बरसाती नदियां गर्मियों में दम तोड़ देती है। इसलिए नदियों के पानी को बचाना जरूरी हो गया है।
ट्यूबवेल से पानी का दोहन
पानी पर हमारी सबसे अधिक निर्भरता कृषि कार्यों के लिए होती है। पहले खेतों में सिंचाई पारंपरिक और प्राचीन तरीकों से होती थी। अब हम खेतों में सिंचाई के लिए ट्यूबवेल पंप का उपयोग कर रहे हैं जिससे धरती की गहराई में जमा पानी निकल रहा है और भूजल का स्तर भी घट रहा है। यहां इस बात का उल्‍लेख करना जरूरी है कि हमारे देश में कुल उपयोग किए जा रहे पीने योग्‍य पानी का 42 (2011 की जनगणना आंकड़ों के अनुसार) प्रतिशत हिस्‍सा हैंडपंप और ट्यूबवेल से निकाला जाता है। इतना ही नहीं एक ग्‍लोबल रिपोर्ट के भूजल का दोहन करने वाले दुनिया के 15 देशों में भारत सबसे ऊपर है।
सबसे ज्‍यादा खपत वाले क्षेत्र
केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार भारत में भूजल का सर्वाधिक दोहन कृषि क्षेत्र द्वारा किया जाता है। इसके बाद घरेलू और फिर औद्योगिक क्षेत्र का नंबर आता है।
कितना पानी चाहिए
रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2050 तक भारत को हर साल 1,180 बिलियन क्‍यूबिक मीटर (बीसीएम) पानी की जरूरत होगी। वर्तमान में हमारे पा 1,123 बीसीएम पानी उपलब्‍ध है। इसमें से 690 बीसीएम पानी नदी-तालाबों से मिलता है और 433 बीसीएम पानी भूमिगत स्रोतों से मिलता है।
बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में स्‍पष्‍ट किया है कि यदि देश में वाटर रिचार्ज प्रणाली का उपयोग बढ़ाया नहीं गया तो पानी की मांग को पूरा कर पाना लगभग असंभव हो जाएगा।
किसे कहते हैं भूजल स्‍तर
भूजल उस पानी को कहा जाता है जो बारिश और अन्य स्रोत्रों के कारण जमीन में चला जाता है और इकट्ठा होता रहता है। गौरतलब है कि उत्तर भारत में भूजल स्तर 2002 से 2006 के बीच हर साल चार सेंटीमीटर तक नीचे आया है।

बुधवार, 15 अप्रैल 2015

वोट के लिए तो जनहित किया ही जा सकता है

गूगल सर्च से साभार
देश में एक दशक तक एक ऐसी सरकार का राज रहा, जिसने योजनाएं तो खूब बनाईं, पर अमल तो चुनिंदा पर ही हो सका। हां, घोटाले जरूर एक से बढ़कर एक हुए। लाखों और करोड़ों लूटना तो अब पुरानी और शर्मनाक बात बन चुकी है। जब तक आंकड़ा 100 करोड़ से ऊपर न हो, इज्‍जत ही नहीं बनती है। सरकार बदली तो उम्‍मीद जगी कि शायद अब व्‍यवस्‍थाएं बदलें। लेकिन यह भी कोरी कल्‍पना साबित होती जा रही हैं।

भ्रष्‍टाचार अब भी बेलगाम है, हां यह कह सकते हैं कि अपनी पीठ थपथपाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। विश्‍व की सबसे तेज उभरती हुई अर्थव्‍यवस्‍था की एक सचाई यह भी है कि यहां अब भी करोड़ों लोग गरीब और भूखे हैं। अशिक्षित और बेरोजगार हैं। जिनके पास पेट भरने को नहीं है। उनको सरकारों से मतलब नहीं होता है, उन्‍हें तो दो वक्‍त की रोटी की चिंता होती है।

बड़े बुजुर्गों में कहा है, 'भूखे भजन न होई गोपाला'। गलत नही है। मौसम की मार ने किसानों के सामने मुसीबत खड़ी कर दी है। देश के कई राज्‍यों में हजारों एकड़ फसल खेत में ही नष्‍ट हो गई है। न जाने कितने किसानों ने आत्‍महत्‍या कर ली है। सरकारों ने उनके जख्‍मों पर राहत का मरहम लगाने के स्‍थान पर महज कुछ सौ रुपए या कुछ हजार रुपए का मुआवजा रूपी झुनझुना थमा दिया है। एक राज्‍य में तो जिला कलेक्‍टर ने किसान की आत्‍महत्‍या का मजाक ही बना दिया।

अजब-गजब मध्‍यप्रदेश की तो बात ही क्‍या है। यहां की राजधानी भोपाल में वीआईपी क्षेत्रों में रहने वालों के लिए विशेष वाटर ट्रीटमेंट प्‍लांट लगाया गया है, ताकि मंत्री और नौकरशाह आरओ क्‍वालिटी का पानी नल से ही पी सकें। लेकिन उन लोगों की सुध कोई नहीं ले रहा है जो नदी में खड़े रहकर आंदोलन कर रहे हैं। एक तरफ खबरें छपती हैं कि राज्‍य का खजाना सस्‍ता हो चुका है और तनख्‍वाहों के अलावा कोई और भुगतान नहीं किया जा सकता है। तो दूसरी ओर रोज नई-नई घोषणाएं हो रही हैं। मजे की बात यह है कि घोषणाएं करने और पूरी होने का अनुपात अपने आप में एक शोध का विषय बन सकता है।

भ्रष्‍टाचार में तो सब एक से बढ़कर एक हैं। यदि फलाने ने ढिमाके पर भ्रष्‍टाचार के आरोप लगाए तो ढिमाके ने उस पर कार्रवाई करने के बजाय फलाने के पाप गिनाना शुरू कर दिया। यानी लब्‍बोलुआब यह कि तुम्‍हारी भी जय-जय और हमारी भी जय-जय।

सारा का सारा ध्‍यान केवल इस ओर है कि किस धर्म को कोसें और किसे अच्‍छा कहें। केंद्र में सत्‍ता परिवर्तन होते ही बचनवीर बुलंद हो गए हैं। आए दिन घर वापसी, लव जेहाद और नसबंदी जैसी बातें होने लगी हैं। क्‍या ऐसा करने से गरीब का पेट भर जाएगा। यदि कोई ईसाई अपना धर्म बदलकर हिंदू हो जाएगा, तो उसे रोजगार, रोटी और छत नसीब होगी। मेरी छोटी बुद्धि तो कहती है कि ऐसा शायद नहीं हो सकेगा।

हालांकि देवतातुल्‍य नेताओं की दृष्टि में ऐसा संभव हो सकता है, जो मेरी समझ में न आ रहा हो। लेकिन क्‍या करूं। आम इंसान जो ठहरा।

मेरे विचार से (शायद अधिकांश लोग इससे सहमत न हों) राजनीति को धर्म या पार्टी केंद्रित न होकर, जनकेंद्रित होना चाहिए। योजनाएं केवल बनाई न जाएं, उनको अमल में लाना भी सुनिश्चित किया जाए। शिक्षा की बात भर न की जाए, वाकई देश के अंतिम नागरिक तक उसे उपलब्‍ध कराया जाए। स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के लिए घोषणाएं भर न की जाएं, बल्कि उसे ऐसा बनाया जाए कि लोगों को सचमुच लाभ मिल सके।

चलिए एक विकल्‍प और बताता हूं। जनहित को यह सोचकर मत करिए कि इससे जनता का भला होगा। क्‍योंकि ऐसा सोचना भारत की राजनीतिज्ञों को शोभा नहीं देता है शायद। नेतागण यह सोचकर यह सब करें कि इससे उनका वोट बैंक मजबूत होगा। हां, शायद इस लालच में तो जनहित किया ही जा सकता है। बाकि देश और अभागी जनता का भाग्‍य।

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

कहां से आया स्‍वाइन फ्लू, कैसे बचें

हमारे देश में इस साल अब तक स्‍वाइन फ्लू की वजह से 400 से ज्‍यादा मौतें हो चुकी हैं। डॉक्‍टरों का कहना है कि जब तक सर्दी का प्रभाव बना रहेगा, तब तक यह बीमारी भी बनी रहेगी। गर्मी बढ़ने पर ही स्‍वाइन फ्लू के वायरस का बढ़ना रुकता है।इस समय देश के 21 राज्‍यों में स्‍वाइन फ्लू (एन1एन1 इन्‍फ्लुएंजा) एक महामारी के रूप में लोगों की जान ले रहा है। इस साल 6000 हजार से ज्‍यादा लोग इससे प्रभावित हुए और 400 से ज्‍यादा को अपनी जान गंवानी पड़ी।

स्‍वाइन फ्लू के सबसे ज्‍यादा मामले मध्‍यप्रदेश, राजस्‍थान, गुजरात, तेलंगाना, महाराष्‍ट्र, दिल्‍ली, कर्नाटक और तमिलनाडु में सामने आए हैं। पिछले सप्‍ताह कोलकाता में 22 लोगों के इसके लक्षण मिले थे और 2 की मौत भी इसी की वजह से हुई।

स्‍वाइन फ्लू की शुरुआत
स्‍वाइन फ्लू के बारे में 2009 में पता चला था। उस वक्‍त इस बीमारी के मरीज कनाडा, मैक्सिको और अमेरिका में थे। 13500 लोग इससे प्रभावित थे और 95 की मृत्‍यु हुई थी। उस वर्ष भारत में स्‍वाइन फ्लू का एक ही मामला सामने आया था। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के अनुसार एन1एन1 वायरस भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में काफी तेजी से फैला है। यह बीमारी हवा की वजह से फैलती है। और एक मरीज से दूसरे मरीज तक भी इसका संक्रमण होता है। स्‍वाइन फ्लू से बचने के लिए सावधानी और समझदारी दोनों ही जरूरी हैं।

एच1एन1 फ्लू क्‍या है
यह टाइप-ए प्रकार का इन्‍फ्लुएंजा वायरस है। इसे स्‍वाइन फ्लू इसलिए कहा जाता है, क्‍योंकि यह सूअरों में पाया जाता है। यह बीमारी अधिकांशत: उन्‍हीं लोगों को होती थी, जिनका संपर्क सूअरों से होता था। कई देशों में सूअर पाले और खाए भी जाते हैं। इस वजह से यह बीमारी इंसानों में पहुंची है। यही वजह है कि यह इंसानों के जरिये तेजी से फैली।

किसे हो सकता है संक्रमण
नेशनल इंस्‍टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के इन्‍फ्लुएंजा के अनुसार यह संक्रमण किसी भी व्‍यक्ति हो सकता है। लेकिन जिन लोगों को अस्‍थमा, सीओपीडी, डायबिटीज, हृदय रोग या ऑटो इम्‍यून डिसऑर्डर हो, उन्‍हें यह संक्रमण होने का खतरा सबसे ज्‍यादा होता है। लीवर और किडनी की बीमारियों से ग्रस्‍त मरीज और गर्भवती महिला को भी इस संक्रमण का खतरा ज्‍यादा रहता है।

स्‍वाइन फ्लू के लक्षण क्‍या हैं
स्‍वाइन फ्लू और मौसमी फ्लू के लक्षण काफी हद तक एक समान ही होते हैं। स्‍वाइन फ्लू से पीड़ि‍त मरीजों को बुखार, खांसी, गले में खराश, सिर दर्द, शरीर में दर्द रहता है। कुछ लोगों को जुकाम, ठंड लगना, फटीग, डायरिया और उल्टियां भी होती हैं।यदि सांस लेने में तकलीफ हो, पेट और सीने में दर्द हो तो यह भी स्‍वाइन फ्लू का लक्षण हो सकता है। ऐसी स्थिति में तुरंत अपने फिजिशियन डॉक्‍टर को इसके बारे में अवगत कराना चाहिए। बच्‍चों में यदि स्किन नीली सी दिखने लगे, पानी न पिया जाए, सांस लेने में तकलीफ हो, नींद जल्‍दी न खुले, बुखार और खांसी हो तो तुरंत डॉक्‍टर के पास जाना चाहिए।

यदि स्‍वाइन फ्लू हो जाए तो
स्‍वाइन फ्लू की पुष्टि होने पर टैमीफ्लू या उसी प्रकार का एंटीवायरल दवा लेनी चाहिए। संक्रमण होने के दूसरे दिन से दवाओं का असर दिखाई देता है। पिछले साल प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया था कि संक्रमण होन के दो दिनों के भीतर टैमीफ्लू लेने से मौत की संभावना को 50 प्रतिशत तक घटाया जा सकता है।

इस रिपोर्ट को 38 देशों के 29000 मरीजों पर किए गए शोध के बाद प्रकाशित किया गया था। शोध में पता चला था कि जिन मरीजों ने टैमीफ्लू दवा नहीं ली थी, उनकी मौत ज्‍यादा हुई, जबकि इस दवा को लेने वाले मरीजों की मृत्‍युदर 25 प्रतिशत कम थी।

स्‍वाइन फ्लू से बचने के लिए क्‍या करना चाहिए
स्‍वाइन फ्लू से बचने के लिए स्‍वच्‍छता बहुत जरूरी है। कोशिश करें कि किसी भी खुली और सार्वजनिक चीज को छूने के बाद और किसी से हाथ मिलाने के बाद हाथों को अच्‍छी तरह से धोएं। यदि आप सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते हैं तो नाक और मुंह को ढंककर रखें।

दफ्तर में फोन, प्रिंटर और दरवाजों को छूने के बाद हाथ धोना हितकर रहेगा। जो लोग खांस रहे हों या छींक रहे हों, उनसे दूरी बनाकर रखें।संभव हो तो ऐसे लोगों से छह फीट की दूरी बनाए रखें। इसी तरह से यदि किसी सार्वजनिक स्‍थल पर आपको छींक आए या खांसी आए तो मुंह और नाक को रूमाल से ढंक लें। बिना धुले हाथों से अपनी आंख, नाक तथा मुंह को न छुएं।